Homeopathic Treatment of Pcos or Pcod (Polycystic Ovarian Syndrome) - Dr. Girish Gupta

Homeopathic Treatment of Pcos or Pcod (Polycystic Ovarian Syndrome) – Dr. Girish Gupta

Polycystic ovary syndrome (PCOS) is a common heterogeneous endocrine disorder in women of reproductive age. It is characterized by various clinical presentations such as ovulatory dysfunction, polycystic ovaries, and hyperandrogenism. Considering the side effects associated with conventional treatment and the patients who fail to respond to these measures, there is a demand for a complementary therapy that would alleviate symptoms of PCOS without side effects. Homeopathy is a complementary system of medicine that has been successfully used in different disease conditions, including PCOS. A case series of PCOS is hereby presented, to demonstrate some positive results of individualized homeopathic treatment.

In Hindi:  पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) का होम्‍योपैथी से सफल उपचार

बांझपन होने के कारणों में एक बड़ा कारण पॉलीसिस्टिक ओवेरियन
सिंड्रोम (PCOS) है। इस बीमारी के होम्‍योपैथिक दवाओं द्वारा सफल इलाज पर लखनऊ स्थित होम्योपैथिक रिसर्च फाउंडेशन के तत्वावधान में डॉ गिरीश गुप्‍ता द्वारा किये गये साक्ष्य
आधारित शोध “महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) का होम्‍योपैथिक इलाज: एक संभावित अवलोकनात्मक अध्ययन” नामक शीर्षक से “इंडियन जर्नल आफ रिसर्च इन होम्‍योपैथी” (IJRH) के जनवरी-मार्च 2021 अंक में प्रकाशित किया गया है। यह जर्नल सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन होम्‍योपैथी (CCRH) द्वारा प्रकाशित किया जाता है जिसमें गहन छानबीन कर अनेक कसौटी पर कसने के बाद ही लेख के प्रकाशन
की स्वीकृति दी जाती है। प्रकाशित रिसर्च को दूसरे देशों में आसानी से समझा जा सके इसके लिए रिसर्च का सारांश कई विदेशी भाषाओं में भी प्रकाशित किया जाता है। पी०सी०ओ०एस० पर इस शोध के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गिरीश गुप्‍ता ने बताया कि यह शोध कार्य वर्ष 2015 से 2017 तक आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्राप्त वित्‍तीय सहायता से की गयी। पी०सी०ओ०एस० की इस शोध परियोजना का उद्घाटन जून 2015 में लखनऊ के तत्‍कालीन महापौर व वर्तमान में उत्‍तर प्रदेश सरकार में उप मुख्‍यमंत्री डॉ० दिनेश शर्मा, तत्‍कालीन मुख्‍य सचिव श्री आलोक रंजन द्वारा पूर्व महापौर डॉ० एस०सी० राय की उपस्थिति में गौरांग क्लीनिक एवं होम्योपैथिक अनुसंधान केंद्र के परिसर में किया गया था। यह शोध इस बीमारी से पीड़ित 34 महिलाओं (23 अविवाहित तथा 11 विवाहित) पर 2 वर्ष की अवधि में किया गया जिसके परिणाम अत्यंत उत्साहवर्धक रहे। इन 34 महिलाओं में से 16 में आशातीत लाभ प्राप्त हुआ, 12 में यथास्थिति बनी रही तथा 6 में कोई लाभ नहीं हुआ।

पी०सी०ओ०एस०क्‍या बीमारी है?

मासिक चक्र के दौरान प्रत्‍येक माह ओवरी से अंडे निकलते हैं, ये अंडे या तो पुरुष के शुक्राणु के सम्‍पर्क में आकर भ्रूण का निर्माण करते हैं या जब शुक्राणु के सम्‍पर्क नहीं होता
है तो ये अपने आप नष्‍ट हो जाते हैं। ये प्रक्रिया हर माह चलती है, ओवरी को कंट्रोल करने वाले हार्मोन्‍स, पीयूष ग्रंथि (pituitary gland) में बनते हैं। यदि इन हार्मोन्‍स का संतुलन बिगड़ जाता है तो इसका प्रभाव अंडाशय पर पड़ता है और प्रति माह मासिक चक्र के समय निकलने वाले अंडे परिपक्व (mature) नहीं हो पाते हैं जिससे वे न तो शुक्राणु के
सम्‍पर्क में आ पाते हैं और न ही नष्‍ट हो पाते हैं, ऐसी स्थिति में ये अंडे ओवरी के चारों ओर
चिपकने लगते हैं, यह जमाव एक रिंग के आकार का हो जाता है, जिसे रिंग आफ
पर्ल भी कहते हैं। 

पी०सी०ओ०एस० के कारण इस बीमारी के ज्‍यादातर कारण मनोवैज्ञानिक हैं। ओवरी को नियंत्रित करने वाले हार्मोन्‍स जो पीयूष ग्रंथि में बनते हैं अत्‍यधिक चिंता, डिप्रेशन, झगड़ा, प्रताड़ना, वित्‍तीय हानि, प्‍यार-मोहब्‍बत में धोखा, अपमान, इच्‍छाओं की पूर्ति न होना जैसे कारणों से अनियंत्रित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में इस बीमारी की स्थिति पैदा हो जाती है। पी०सी०ओ०एस० का असर चूंकि मासिक चक्र के दौरान निकलने वाला अंडा परिपक्व नहीं होता है इसलिए वह शुक्राणु के सम्‍पर्क में आकर भ्रूण भी नहीं बना पाता है जिससे महिला गर्भवती नहीं हो पाती है। पी०सी०ओ०एस० का एक और दुष्प्रभाव यह है कि इसके चलते मासिक धर्म अनियमित हो जाता है और कभी-कभी तीन माह, छह माह, या साल-साल भर तक नहीं होते हैं। डॉ गुप्‍ता बताते हैं कि यह बीमारी आजकल की बड़ी समस्‍या बनी हुई है, भारत में पांच में से एक महिला इस बीमारी के चलते गर्भ धारण नहीं कर पाती है एवं वैश्विक स्‍तर पर 2 से 26 प्रतिशत महिलाओं में यह बीमारी पायी जा रही है।

कैसे करें निदान

यदि मासिकधर्म साल भर में आठ से कम बार हों या तीन माह से ज्‍यादा तक रुक जाये, या एक साल तक गर्भधारण न हो पाये तो अल्‍ट्रासाउंड जांच से यह पता लगाना चाहिये कि पी०सी०ओ०एस० है अथवा नहीं।

होम्‍योपैथिक इलाज

होम्‍योपैथी में समग्र दृष्टिकोण (holistic approach) से यानी शरीर और मन दोनों को एक मानते हुए लक्षणों के हिसाब से दवाओं का चुनाव किया जाता है जो साइको न्‍यूरो हार्मोनल एक्सिस पर कार्य करते हुए ओवरी को स्वस्थ कर देता है एवं पी०सी०ओ०एस० ठीक हो जाता है। प्रतिस्पर्धा, मानसिक तनाव, भय, असुरक्षा की भावना, पारिवारिक परिवेश में परिवर्तन, मोटापा, डायबिटीज आदि भी इस मर्ज के कुछ कारण हैं। जो महिलायें योग व व्यायाम द्वारा इन सभी कारकों को नियंत्रित कर लेती हैं तथा अपना वजन घटा लेती हैं उनकी ओवरी में वापस अंडे बनना शुरू हो जाते हैं तथा गर्भधारण का मार्ग प्रशस्त हो जाता है| इसलिये महिलाओं को अपनी दिनचर्या को सही करना चाहिए, खेल में भाग लेना चाहिये और योग व व्यायाम करना चाहिये। कोल्ड ड्रिंक, फास्ट फूड एवं जंक फूड से बचना चाहिए एवं हरी पत्तेदार सब्जियों तथा फलों का सेवन अधिक करना चाहिये।

About Author:

डॉ० गिरीश गुप्ता

मुख्य परामर्श चिकित्सक

गौरांग क्लीनिक एवं होम्योपैथिक अनुसंधान केंद्र

बी०-1/41, सेक्टर-ए०, निकट नावेल्टी अलीगंज, कपूरथला, अलीगंज, लखनऊ-24

 

दूरभाष: 0522-4004370, 4960458; मोबाइल: 9415109748

Dr. Girish Gupta

Posted By

Homeopathy360 Team